बहुत समय पहले, एक छोटे से गाँव में, घने जंगलों के बीच एक पुराना कुआँ था जिसे लोग “मौत का कुआँ” के नाम से जानते थे। गाँव वालों का मानना था कि इस कुएँ में एक भयानक आत्मा रहती थी, जो रात के समय लोगों को अपनी ओर खींचती थी और उन्हें मार डालती थी। कुएँ के पास जाने की हिम्मत कोई नहीं करता था, और जब भी कोई व्यक्ति गायब हो जाता, लोग मानते थे कि वह कुएँ की आत्मा का शिकार हो गया है।
गाँव के बच्चे उस कुएँ के पास जाने से डरते थे, और बड़े बुजुर्ग भी उस कुएँ के बारे में बात करने से कतराते थे। लेकिन एक दिन, गाँव के एक साहसी युवक, जिसका नाम अर्जुन था, ने फैसला किया कि वह इस रहस्य को सुलझाएगा। अर्जुन ने अपने दोस्तों को भी इस साहसी कार्य में शामिल होने के लिए मनाया।
रात के समय, जब पूरा गाँव सो रहा था, अर्जुन और उसके दोस्त उस कुएँ के पास पहुंचे। कुएँ के पास एक हल्की, रहस्यमयी रोशनी दिखाई दी। अर्जुन ने धीरे-धीरे कुएँ के पास जाकर झांका। अंदर का दृश्य देखकर वह हक्का-बक्का रह गया। कुएँ के भीतर एक भयानक आत्मा, सफेद कपड़ों में लिपटी हुई, पानी में तैर रही थी। उसकी आँखें लाल और चेहरे पर भयानक क्रोध था।
अर्जुन ने साहस जुटाकर पूछा, “तुम कौन हो? और यहाँ क्या कर रही हो?”
आत्मा ने अपनी लाल, भयानक आँखों से अर्जुन की ओर देखा और कहा, “मेरा नाम सविता है। मैं इस गाँव की ही थी। वर्षों पहले, गाँव वालों ने मुझ पर झूठा आरोप लगाकर मुझे इस कुएँ में धकेल दिया और मेरी हत्या कर दी। मेरी आत्मा यहाँ अटकी रह गई और मैं अब अपने साथ हुए अन्याय का बदला ले रही हूँ।”
सविता की आवाज में एक अजीब सी सिहरन थी, जिससे अर्जुन और उसके दोस्तों की रूह कांप गई। अर्जुन और उसके दोस्तों को सविता की कहानी सुनकर बहुत दुख हुआ। उन्होंने सोचा कि कैसे सविता की आत्मा को शांति दिलाई जाए। उन्होंने गाँव के बुजुर्गों से इस बारे में बात की। बुजुर्गों ने बताया कि सविता की आत्मा को मुक्ति दिलाने के लिए एक विशेष पूजा की आवश्यकता है।
अर्जुन और उसके दोस्त उस पूजा की तैयारी में जुट गए। उन्होंने गाँव के पुजारी से सलाह ली और सारी आवश्यक सामग्रियों का इंतजाम किया। पूजा के दिन, पूरी गाँव ने मिलकर पूजा की और सविता की आत्मा के लिए प्रार्थना की। पूजा के दौरान, हवा में एक अजीब सी ठंडक छा गई और एक भयानक आवाज गूँजने लगी। लेकिन जैसे-जैसे पूजा आगे बढ़ी, सविता की आत्मा धीरे-धीरे शांत होने लगी।
पूजा के बाद, सविता की आत्मा ने अर्जुन और उसके दोस्तों को धन्यवाद कहा और फिर वह धीरे-धीरे हवा में विलीन हो गई। इस घटना के बाद, गाँव वाले कुएँ के पास जाने से नहीं डरते थे और उन्होंने कुएँ को साफ किया और उसका नाम “शांति का कुआँ” रख दिया। अब वह कुआँ गाँव के सबसे प्रसिद्ध स्थानों में से एक बन गया और लोग वहां आकर सविता की कहानी सुनते थे।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जब हम एकजुट होकर काम करते हैं, तो हम किसी भी भयानक रहस्य को सुलझा सकते हैं और आत्माओं को शांति दिला सकते हैं। अर्जुन और उसके दोस्तों ने मिलकर गाँव को मौत के कुएँ के डर से मुक्त किया और गाँव में एक नई पहचान दिलाई।