गाँव के किनारे एक पुराना बगीचा था, जिसका नाम “भूतिया बगीचा” रखा गया था। यह बगीचा हमेशा से ही गाँव वालों के लिए एक रहस्य बना रहा। कहते थे कि वहाँ रात के समय अजीब आवाजें आती थीं और जो भी उस बगीचे में प्रवेश करता, वह कभी वापस नहीं लौटता। गाँव के लोग उस बगीचे के पास जाने से डरते थे, लेकिन इस बगीचे ने हमेशा से ही जिज्ञासु मनों को आकर्षित किया है।
एक दिन, गाँव के तीन दोस्त—रविंद्र, साक्षी और मोहन—ने तय किया कि वे इस रहस्यमय बगीचे में जाएंगे। रविंद्र एक साहसी लड़का था, साक्षी हमेशा नई चीजें करने के लिए उत्सुक रहती थी, और मोहन थोड़ा संकोची था लेकिन अपने दोस्तों के साथ जाने का मन बना लिया। उन्होंने तय किया कि वे रात के अंधेरे में जाएंगे, जब सब सो रहे होंगे।
रात का समय आया। चाँद की रोशनी में बगीचे का दृश्य और भी डरावना लग रहा था। तीनों दोस्त धीरे-धीरे बगीचे में प्रवेश किए। जैसे ही वे आगे बढ़े, उन्हें वहाँ की खामोशी ने सन्नाटे को और भी गहरा बना दिया। अचानक, एक हल्की सी आवाज सुनाई दी: “Help me, I am trapped in this bhoot ka garden.” इस आवाज ने उनके दिलों की धड़कनें तेज कर दीं।
साक्षी ने हिम्मत जुटाई और कहा, “हमें आगे बढ़ना चाहिए।” वे धीरे-धीरे बगीचे के बीच में पहुँचे, जहाँ एक पुरानी हवेली थी। यह हवेली बहुत पुरानी और खंडहर में बदल चुकी थी, लेकिन उसके दरवाजे पर एक धुंधली आकृति खड़ी थी। यह आकृति एक महिला की थी, जिसने कहा, “मैं यहाँ कई सालों से trapped हूँ।”
रविंद्र ने डरते हुए पूछा, “तुम कौन हो?” महिला ने कहा, “मैं इस बगीचे की रक्षक हूँ। जो लोग मुझे भूल जाते हैं, मैं उन्हें अपनी दुनिया में खींच लेती हूँ।” मोहन ने कहा, “हम तुम्हारी मदद करेंगे। हमें बताओ कि हमें क्या करना होगा।”
महिला ने उन्हें एक रहस्य बताया: “इस bhoot ka garden में एक जादुई फूल है, जो मुझे आज़ाद कर सकता है। लेकिन वह फूल केवल पूर्णिमा की रात को खिलता है।” तीनों दोस्तों ने एक-दूसरे की ओर देखा और फिर साक्षी ने कहा, “हमें ऐसा कुछ करना होगा, जिससे तुम्हें आज़ादी मिले।”
महिला ने उन्हें बताया कि फूल तक पहुँचने के लिए उन्हें तीन कठिनाइयों का सामना करना होगा। पहली कठिनाई थी एक पुरानी और खंडहर में बदल चुकी दीवार को पार करना। दूसरी कठिनाई थी एक खतरनाक झील को पार करना, जिसमें भूतिया जलचर मौजूद थे। तीसरी और अंतिम कठिनाई थी एक पुरानी किताब को खोजना, जिसमें फूल का सही स्थान लिखा था।
तीनों दोस्तों ने पहले दीवार को पार करने का निश्चय किया। वे दीवार के पास पहुँचे और देखा कि वहाँ एक पुरानी सीढ़ी थी। सीढ़ी पर चढ़ते समय, दीवार से अजीब आवाजें आ रही थीं, जैसे कोई उन्हें रोकने की कोशिश कर रहा हो। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और दीवार पार कर ली।
अब उनकी अगली चुनौती थी झील को पार करना। झील के पानी में अजीब-सी हलचल हो रही थी। मोहन ने कहा, “हमें नाव की जरूरत है।” साक्षी ने पास में एक पुरानी नाव देखी और कहा, “यहाँ एक नाव है, हम इस पर सवार होकर पार कर सकते हैं।” तीनों नाव में बैठे और धीरे-धीरे झील के बीच में पहुँचे। अचानक, पानी में से कई भूतिया जलचर बाहर आए। वे डरावने थे, लेकिन दोस्तों ने एक-दूसरे को सांत्वना दी और नाव को तेजी से चलाने लगे।
जैसे ही वे झील के बीच पहुँचे, जलचरों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन रविंद्र ने साहस दिखाते हुए कहा, “हम तुम्हें नहीं डरने देंगे, हमें बस इस बगीचे के रहस्य को सुलझाना है!” दोस्तों की एकजुटता ने जलचरों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। और अंततः, वे झील पार कर गए।
अब बारी थी तीसरी चुनौती की। उन्हें उस पुरानी किताब को खोजना था, जिसमें फूल का स्थान लिखा था। वे हवेली के अंदर गए और वहाँ बहुत सारी पुरानी चीजें देखीं। अंततः, साक्षी ने एक पुरानी अलमारी के अंदर किताब को पाया। किताब खोलते ही, उनमें से एक पन्ना गिर गया और उस पन्ने पर लिखा था कि फूल एक विशेष पेड़ के नीचे खिलता है, जो बगीचे के सबसे गहरे हिस्से में है।
तीनों दोस्तों ने उस पेड़ की ओर बढ़ना शुरू किया। वहाँ पहुँचने पर, उन्होंने देखा कि पेड़ के नीचे एक सुंदर, चमकीला फूल खिला था। यह फूल बहुत ही अद्भुत था और उसकी खुशबू हवा में बिखर गई थी। जैसे ही उन्होंने फूल को छुआ, महिला की आत्मा धीरे-धीरे उनके सामने प्रकट हुई।
वह धन्यवाद देते हुए बोली, “अब यह बगीचा तुम्हारा है। इसे प्यार से सींचो और इसे भूतिया मत बनने दो।” उस रात के बाद, गाँव के लोग उस बगीचे को नया जीवन देने लगे। उन्होंने वहाँ पेड़-पौधे लगाए, फूलों की क्यारियाँ बनाईं, और बच्चों के खेलने के लिए जगह बनाई।
भूतिया बगीचा अब एक खूबसूरत बगीचे में बदल गया, जहाँ लोग खुशी से समय बिताने आए। गाँव के लोग हर पूर्णिमा की रात उस जादुई फूल की पूजा करते थे, और उसे भूतिया बगीचे के रक्षक के रूप में मानते थे। इस प्रकार, भूतिया बगीचा अब एक नई पहचान के साथ जीवित हो गया, जहाँ प्रेम और भाईचारे की गूंज थी।