प्रेतवाधित पुस्तकालय
श्यामनगर गाँव की एक प्राचीन और विशाल पुस्तकालय जिसे “सत्यवती पुस्तकालय” के नाम से जाना जाता था, अपने समय की सबसे प्रसिद्ध लाइब्रेरी थी। इसके अलावा इसे लोग एक भूतिया पुस्तकालय कहते थे क्योंकि यह माना जाता था कि वहाँ एक भूत का वास था जो आपसी झगड़े के दौरान एक पुस्तक प्रेमी की हत्या से उत्पन्न हुआ था।
पुस्तकालय अब बंद हो चुका था और उसकी ओर जाने वाले लोग बहुत डरते थे। कई लोग दावा करते थे कि उन्होंने वहाँ अजीब-अजीब ध्वनियाँ सुनी हैं और भूतिया घटनाएँ देखी हैं। लेकिन गाँव के एक युवा शिक्षक, रवि, जिसने हमेशा भूतों की कहानियाँ को मिथक माना था, ने इस पुस्तकालय के रहस्य को जानने का निर्णय लिया।
रवि ने अपनी दोस्त मनीषा और अपना छात्र अंकित को इस मिशन में साथ लिया। एक रात, जब पूरा गाँव सो रहा था, रवि और उनके सहयोगी इस भूतिया पुस्तकालय के अंदर गए। पुस्तकालय के दरवाजे भारी और जंग लगे हुए थे, जिनकी चरमराहट ने भयावह माहौल बना दिया।
अंदर घुसते ही उनका स्वागत धूल और मकड़ियों के जालों ने किया। पुस्तकालय के लोगों सजे पुरानी अलमारियों में हज़ारों पुस्तकों का संग्राह था, जिनमें से कई पन्ने पुराने होकर फढ़ने लगे थे। वे तीनों धीरे-धीरे आगे बढ़े और मुख्य हॉल में पहुँचे, जहाँ एक पुराना दीवान रखा हुआ था। दीवान पर एक अधखुली पुस्तक पड़ी थी, जो की लाइब्रेरी की कहानी बताती थी।
जैसे ही उन्होंने पुस्तक उठाई, एक ठंडी हवा का झटका आया और सारी अलमारियाँ हिलने लगीं। उस वक्त एक अजीबोगरीब आवाज़ ने उनका ध्यान खींचा, “तुम यहाँ क्यों आए हो? यह जगह श्रापित है।”
रवि ने साहस से कहा, “हम यहाँ यह जानने आए हैं कि तुम्हारी आत्मा को शांति क्यों नहीं मिल रही।”
भूत ने कातर आवाज़ में कहा, “मैं इस पुस्तकालय का संरक्षक था। एक दिन, कुछ दुष्ट लोग अवैध रूप से यहाँ की पुस्तकों को बेचना चाहते थे, मैंने उन्हें रोकने की कोशिश की और इसी संघर्ष में मेरी हत्या कर दी गई। मेरी आत्मा को शांति तभी मिलेगा जब उन दोषियों को उनके कर्मों की सजा मिलेगी।”
रवि ने उस भूत से वादा किया कि वह इस रहस्य का पर्दाफाश करेगा। अगले दिन, रवि और मनीषा ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और पुरानी फाइलों और दस्तावेजों की मदद से उन दोषियों का पता लगाया। पुलिस ने उन दोषियों को पकड़ा और उन्हें कड़ी सजा दी।
इससे पुस्तकालय के भूत को शांति मिली और उसने धन्यवाद कहा। सत्यवती पुस्तकालय फिर से खुल गया और उसे चर्चित पर्यटन स्थल बना दिया गया। रवि और उनके दोस्तों की बहादुरी की हर जगह प्रशंसा हुई और पुस्तकालय का भय भूतकाल की बात हो गई।