हिमाचल प्रदेश के सुंदर और शांत राज्य में, एक शांत घाटी में, एक सुंदर लेकिन डरावनी झील थी जो ‘भूतवाली झील’ के नाम से जानी जाती थी। गांववालों का मानना था कि इस झील में एक भूत का वास है, जो रात के समय झील के पानी में दिखता है। इस झील के बारे में कई कहानियां प्रचलित थीं, लेकिन सबसे प्रसिद्ध कहानी थी सुशीला की।
सुशीला उस गांव की एक सुंदर और मासूम लड़की थी। वह हर सुबह झील पर आकर पानी भरती थी और वहां की खूबसूरती का आनंद लेती थी। एक दिन, जब वह पानी भर रही थी, तो उसने देखा कि झील के पानी में एक अजीब सी चमक हो रही है। जैसे ही वह उस चमक की ओर देखने लगी, उसके पैर फिसल गए और वह झील में गिर गई। कुछ पलों बाद, वहां सिर्फ सन्नाटा और ठंडा पानी रह गया।
गांववाले सुशीला की खोज में निकल पड़े, लेकिन उसका कोई पता नहीं चला। इसके बाद से ही, गांव में अजीब घटनाएं घटने लगीं। रात के समय, लोग कहते थे कि उन्होंने सुशीला की परछाई को झील के पानी में देखा है। उसकी चुन्नी की हल्की सी आवाज सुनाई देती, जिसने लोगों को भयभीत कर दिया।
कुछ सालों बाद, गांव के एक नौजवान, अजय, ने ठान लिया कि वह इस रहस्य का हल निकालेगा। अजय ने सुशीला की कहानी सुनी थी और वह जानना चाहता था कि उसके साथ क्या हुआ था। वह रात के समय झील के किनारे गया और उसने देखा कि झील का पानी धीरे-धीरे चमकने लगा। अचानक, उसने देखा कि पानी में सुशीला की परछाई उभर रही है। उसकी आंखें बंद थीं और उसकी बाहें हवा में तैर रही थीं जैसे वह किसी को बुला रही हो।
अजय ने हिम्मत करके पूछा, “कौन हो तुम? क्या तुम सुशीला हो?”
उस धुंधली परछाई ने धीरे से कहा, “मुझे बचाओ। मैं इस झील में फंस गई हूं।”
अजय को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसने झील में कूदने का फैसला किया और जैसे ही वह पानी में कूदा, उसे महसूस हुआ कि किसी ने उसकी बांह पकड़ ली है। उसने सुशीला को खींचने की कोशिश की, लेकिन अजीब वजनी अहसास हुआ। अचानक, उसने देखा कि सुशीला की परछाई गायब हो गई और वह खुद पानी में तैर रहा है।
वह जल्दी से बाहर निकला और देखा कि झील की सतह फिर से शांत हो गई थी। अगले दिन, उसने गांववालों को अपनी आपबीती सुनाई। गांववालों ने पूजाएं कीं और सुशीला की आत्मा की शांति के लिए उपक्रम किए।
समय के साथ, झील का पानी फिर से शांत और स्वच्छ हो गया। सुशीला की आत्मा को शायद शांति मिल गई थी। गांववालों ने उस झील का नाम बदल कर ‘सुशीला झील’ रख दिया और हर वर्ष उसकी याद में एक मेला आयोजित करने लगे।
इस घटना के बाद से, गांव के लोग समझ गए कि अंधविश्वास और विश्वास के बीच की रेखा बहुत पतली होती है। सुशीला की कहानी ने गांव में एक बार फिर से शांति स्थापित कर दी और लोग अब उस झील को प्यार और श्रद्धा की नजर से देखते थे।